कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
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This podcast presents you hindi poems by dreamer poet
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साहित्य और रंगकर्म का संगम - नई धारा एकल। इस शृंखला में अभिनय जगत के प्रसिद्ध कलाकार, अपने प्रिय हिन्दी नाटकों और उनमें निभाए गए अपने किरदारों को याद करते हुए प्रस्तुत करते हैं उनके संवाद और उन किरदारों से जुड़े कुछ किस्से। हमारे विशिष्ट अतिथि हैं - लवलीन मिश्रा, सीमा भार्गव पाहवा, सौरभ शुक्ला, राजेंद्र गुप्ता, वीरेंद्र सक्सेना, गोविंद नामदेव, मनोज पाहवा, विपिन शर्मा, हिमानी शिवपुरी और ज़ाकिर हुसैन।
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“Skandagupta" is a drama by the poet "Jaishankar Prasad". The play revolves around the historical figure Skandagupta, a "Gupta dynasty" emperor who ruled in ancient India. The play explores Skandagupta's challenges and commitment to upholding justice and righteousness through the dramatic narrative. The drama delves into themes of leadership, duty, and patriotism while also depicting the personal struggles and decisions faced by Skandagupta. Skandagupta" is a drama written by Hindi poet and ...
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This podcast presents Hindi poetry, Ghazals, songs, and Bhajans written by me. इस पॉडकास्ट के माध्यम से मैं स्वरचित कवितायेँ, ग़ज़ल, गीत, भजन इत्यादि प्रस्तुत कर रहा हूँ Awards StoryMirror - Narrator of the year 2022, Author of the month (seven times during 2021-22) Kalam Ke Jadugar - Three Times Poet of the Month. Sometimes I also collaborate with other musicians & singers to bring fresh content to my listeners. Always looking for fresh voices. Write to me at [email protected] #Hind ...
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"sham e shayari" is a captivating podcast that takes you on a poetic journey through the rich and expressive world of Hindi literature. With each episode, Fanindra Bhardwaj, a talented poet and voice artist, skillfully weaves together words and emotions to create a truly immersive experience. In this podcast, you'll encounter a wide range of themes, from love and heartbreak to nature and spirituality. Fanindra's poetry beautifully captures the essence of these emotions, allowing listeners to ...
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मृत घोषित | अंकिता आनंद उसके आख़िरी दिनों में कभी टूथपेस्ट के ट्यूब को दो टुकड़ों में काटा हो, तो तुमने देखा होगा कितना कुछ बचा रह जाता है तब भी जब लगता है सब ख़त्म हो गया। ज़िंदगी का कितना बड़ा टुकड़ा अक्सर फ़ेंक दिया जाता है उसे मरा समझ।द्वारा Nayi Dhara Radio
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उन्होंने घर बनाये - अज्ञेय उन्होंने घर बनाये और आगे बढ़ गये जहाँ वे और घर बनाएँगे। हम ने वे घर बसाये और उन्हीं में जम गये : वहीं नस्ल बढ़ाएँगे और मर जाएँगे। इस से आगे कहानी किधर चलेगी? खँडहरों पर क्या वे झंडे फहराएँगे या कुदाल चलाएँगे, या मिट्टी पर हमीं प्रेत बन मँडराएँगे जब कि वे उस का गारा सान साँचों में नयी ईंटें जमाएँगे? एक बिन्दु तक कहानी हम ब…
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Dharti Par Hazaar Cheezain Thin | Anupam Singh
3:30
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3:30धरती पर हज़ार चीजें थीं काली और खूबसूरत | अनुपम सिंह धरती पर हज़ार चीजें थीं काली और खूबसूरत उनके मुँह का स्वाद मेरा ही रंग देख बिगड़ता था वे मुझे अपने दरवाज़े से ऐसे पुकारते जैसे किसी अनहोनी को पुकार रहे हों उनके हज़ार मुहावरे मुँह चिढ़ाते थे काली करतूतें काली दाल काला दिल काले कारनामे बिल्लियों के बहाने दी गई गालियाँ सुन मैं ख़ुद को बिसूरती जाती थ…
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Chuka Bhi Hun Main Nahin | Shamsher Bahadur Singh
1:54
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1:54चुका भी हूँ मैं नहीं - शमशेर बहादुर सिंह चुका भी हूँ मैं नहीं कहाँ किया मैनें प्रेम अभी । जब करूँगा प्रेम पिघल उठेंगे युगों के भूधर उफन उठेंगे सात सागर । किंतु मैं हूँ मौन आज कहाँ सजे मैनें साज अभी । सरल से भी गूढ़, गूढ़तर तत्त्व निकलेंगे अमित विषमय जब मथेगा प्रेम सागर हृदय । निकटतम सबकी अपर शौर्यों की तुम तब बनोगी एक गहन मायामय प्राप्त सुख तुम बनो…
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लड़की | अंजना वर्मा गर्मी की धूप में सुर्ख़ बौगेनवीलिया की एक उठी हुई टहनी की तरह वह पतली लड़की गर्म हवा झेलती साइकिल के पैडल मारती चली जा रही है वह जब भी निकलती है बाहर कालेज के लिए कई काम हो जाते हैं रास्ते में दवा की दुकान है और डाकघर भी काम निबटाते और वापस आते देर हो जाती है अक्सर सवेरे का गुलाबी सूरज हो जाता हे सफेद तब तक तपकर रोज़ ही करती है स…
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नई भूख | हेमंत देवलेकर भूख से तड़पते हुए भी आदमी रोटी नहीं मांगता वह चिल्लाता है 'गति...गति!! तेज़...और तेज़... इससे तेज़ क्यों नहीं' कभी न स्थगित होने वाली वासना है गति हमारे पास डाकिये की कोई स्मृति नहीं बची। दुनिया के किसी भी कोने में पलक झपकते पहुँच रहा है सब कुछ सारी आधुनिकता इस वक़्त लगी है समय बचाने में - जो स्वयं ब्लैक होल है। हो सकता है किसी रो…
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Tum Nahi Samjhogey | Bhavani Prasad Mishra
1:43
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1:43तुम नहीं समझोगे | भवानीप्रसाद मिश्र तुम नहीं समझोगे केवल किया हुआ इसलिए अपने किए पर वाणी फेरता हूँ और लगता है मुझे उस पर लगभग पानी फेरता हूँ तब भी नहीं समझते तुम तो मैं उलझ जाता हूँ लगता है जैसे नाहक़ अरण्य में गाता हूँ और चुप हो जाता हूँ फिर लजाकर अपनी वाणी को इस तरह स्वर से सजा कर!द्वारा Nayi Dhara Radio
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दौड़ -कुमार अम्बुज मुझे नहीं पता मैं कब से एक दौड़ में शामिल हूँ विशाल अंतहीन भीड़ है जिसके साथ दौड़ रहा हूँ मैं गलियों में, सड़कों पर, घरों की छतों पर, तहखानों में तनी हुई रस्सी पर सब जगह दौड़ रहा हूँ मैं मेरे साथ दौड़ रही है एक भीड़ जहाँ कोई भी कम नहीं करना चाहता अपनी रफ्तार मुझे ठीक-ठीक नहीं मालुम मैं भीड़ के साथ दौड़ रहा हूँ या भीड़ मेरे साथ अक…
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Phoota Prabhat | Bharat Bhushan Aggarwal
2:49
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2:49फूटा प्रभात | भारतभूषण अग्रवाल फूटा प्रभात, फूटा विहान वह चल रश्मि के प्राण, विहग के गान, मधुर निर्भर के स्वर झर-झर, झर-झर। प्राची का अरुणाभ क्षितिज, मानो अंबर की सरसी में फूला कोई रक्तिम गुलाब, रक्तिम सरसिज। धीरे-धीरे, लो, फैल चली आलोक रेख घुल गया तिमिर, बह गई निशा; चहुँ ओर देख, धुल रही विभा, विमलाभ कांति। अब दिशा-दिशा सस्मित, विस्मित, खुल गए द्वा…
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राजधानी | विश्वनाथ प्रसाद तिवारी इतना आतंक था मन पर कि चौथाई तो मर चुका था उतरने के पहले ही राजधानी के प्लेटफॉर्म पर मेरा महानगर प्रवेश नववधू के गृह प्रवेश की तरह था मगर साथियों के साथ दौड़ते, लड़खड़ाते और धक्के खाते सीख ही लिये मैंने भी सारे काट लँगड़ी और धोबिया- पाट एक से एक क़िस्से थे वहाँ परियों और विजेताओं आलिमों और शाइरों के प्याले टकराते हुए …
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अमलताश / अंजना वर्मा (1) उठा लिया है भार इस भोले अमलताश ने दुनिया को रोशन करने का बिचारा दिन में भी जलाये बैठा है करोड़ों दीये! (2) न जाने किस स्त्री ने टाँग दिये अपने सोने के गहने अमलताश की टहनियों पर और उन्हें भूलकर चली गई (3) पीली तितलियों का घर है अमलताश या सोने का शहर है अमलताश दीवाली की रात है अमलताश या जादुई करामात है अमलताश!…
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Peehar Ka Birwa | Amarnath Srivastava
2:03
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2:03पीहर का बिरवा / अमरनाथ श्रीवास्तव पीहर का बिरवा छतनार क्या हुआ, सोच रही लौटी ससुराल से बुआ । भाई-भाई फरीक पैरवी भतीजों की, मिलते हैं आस्तीन मोड़कर क़मीज़ों की झगड़े में है महुआ डाल का चुआ । किसी की भरी आँखें जीभ ज्यों कतरनी है, किसी के सधे तेवर हाथ में सुमिरनी है कैसा-कैसा अपना ख़ून है मुआ । खट्टी-मीठी यादें अधपके करौंदों की, हिस्से-बँटवारे में खो …
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Deewanon Ki Hasti | Bhagwati Charan Varma
2:21
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2:21दीवानों की हस्ती | भगवतीचरण वर्मा हम दीवानों की क्या हस्ती, हैं आज यहाँ, कल वहाँ चले, मस्ती का आलम साथ चला, हम धूल उड़ाते जहाँ चले। आए बनकर उल्लास अभी, आँसू बनकर बह चले अभी, सब कहते ही रह गए, अरे, तुम कैसे आए, कहाँ चले? किस ओर चले? यह मत पूछो, चलना है, बस इसलिए चले, जग से उसका कुछ लिए चले, जग को अपना कुछ दिए चले, दो बात कही, दो बात सुनी; कुछ हँसे औ…
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साठ का होना | मदन कश्यप तीस साल अपने को सँभालने में और तीस साल दायित्वों को टालने में कटे इस तरह साठ का हुआ मैं आदमी के अलावा शायद ही कोई जिनावर इतना जीता होगा कद्दावर हाथी भी इतनी उम्र तक नहीं जी पाते कुत्ते तो बमुश्किल दस-बारह साल जीते होंगे बैल और घोड़े भी बहुत अधिक नहीं जीते उन्हें तो काम करते ही देखा है हल खींचते-खींचते जल्दी ही बूढ़े हो जाते ह…
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आत्मालोचन | त्रिलोचन शब्द, मालूम है, व्यर्थ नहीं जाते हैं पहले मैं सोचता था उत्तर यदि नहीं मिले तो फिर क्या लिखा जाए किंतु मेरे अंतरनिवासी ने मुझसे कहा— लिखा कर तेरा आत्मविश्लेषण क्या जाने कभी तुझे एक साथ सत्य शिव सुंदर को दिखा जाए अब मैं लिखा करता हूँ अपने अंतर की अनुभूति बिना रंगे चुने काग़ज़ पर बस उतार देता हूँ।…
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Main Koi Kavita Likh Raha Hunga | Kailash Manhar
1:47
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1:47मैं कोई कविता लिख रहा हूँगा | कैलाश मनहर मैं कोई कविता लिख रहा हूँगा जब संसद में चल रही होगी बहस कि क्यों और कितना ज़रूरी है बचाना कानून को ? कविता से, होने वाले खतरे पर चिन्तित सत्ता और प्रतिपक्ष के सांसद कानून की मज़बूती के बारे में सोच रहे होंगे, वातानुकूलित सदन में बाहर की उमस और गर्मी से बेख़बर । मन्दिरों में गूँज रहे होंगे शंख और घड़ियाल मस्जिद…
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Kahin Baarish Ho Chuki Hai | Zeeshan Sahil
1:47
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1:47कहीं बारिश हो चुकी है | ज़ीशान साहिल मकान और लोग बहुत ख़ुश और नए नज़र आ रहे हैं रास्ते और दरख़्त ख़ुद को धुला हुआ महसूस कर रहे हैं दरख़्त: पेड़ फूल और परिंदे तेज़ धूप में फैले हुए हैं ख़्वाब और आवाज़ें शायद पानी में डूबे हुए हैं उदासी और ख़ुशी ओस की तरह बिछी है ऐसा लगता है मेरे दिल से बाहर या तुम्हारी आँखों के पास कहीं बारिश हो चुकी है…
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Pao Bhar Kaddu Se Bana Leti Hai Raita | Mamta Kalia
1:41
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1:41पाव भर कद्दू से बना लेती है रायता | ममता कालिया एक नदी की तरह सीख गई है घरेलू औरत दोनों हाथों में बर्तन थाम चौकें से बैठक तक लपकना जरा भी लड़खड़ाए बिना एक साँस में वह चढ़ जाती है सीढ़ियाँ और घुस जाती है लोकल में धक्का मुक्की की परवाह किए बिना राशन की कतार उसे कभी लम्बी नहीं लगी रिक्शा न मिले तो दोनों हाथों में झोले लटका वह पहुँच जाती है अपने घर एक…
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O Prithvi Tumhara Ghar Kahan Hai | Kedarnath Singh
1:54
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1:54ओ पृथ्वी तुम्हारा घर कहाँ है | केदारनाथ सिंह जीने के अथाह खनिजों से लदी और प्रजनन की अपार इच्छाओं से भरी हुई ओ पृथ्वी ओ किसी पहले आदमी की पहली गोल लिट्टी कहीं अपने ही भीतर के कंडे पर पकती हुई ओ अग्निगर्भा ओ भूख ओ प्यास ओ हल्दी ओ घास ओ एक रंगारंग भव्य नश्वरता जिसकी हर आवृत्ति में वही उदग्रता वही पहलापन ओ पृथ्वी ओ मेरी हमरक़्स तुम्हारा घर कहाँ है!…
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कविता में | अमिता प्रजापति कितना कुछ कह लेते हैं कविता में सोच लेते हैं कितना कुछ प्रतीकों के गुलदस्तों में सजा लेते हैं विचारों के फूल कविता को बाँध कर स्केटर्स की तरह बह लेते हैं हम अपने समय से आगे वे जो रह गए हैं समय से पीछे उनका हाथ थाम साथ हो लेती है कविता ज़िन्दगी जब बिखरती है माला के दानों-सी फ़र्श पर कविता हो जाती है काग़ज़ का टुकड़ा सम्भाल…
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अजनबी शाम | जौन एलिया धुँद छाई हुई है झीलों पर उड़ रहे हैं परिंद टीलों पर सब का रुख़ है नशेमनों की तरफ़ बस्तियों की तरफ़ बनों की तरफ़ अपने गल्लों को ले के चरवाहे सरहदी बस्तियों में जा पहुँचे दिल-ए-नाकाम मैं कहाँ जाऊँ अजनबी शाम मैं कहाँ जाऊँ नशेमनों: आश्रय रुख़: दिशा गल्लों: झुण्डद्वारा Nayi Dhara Radio
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देर हो जाएगी | अशोक वाजपेयी देर हो जाएगी- बंद हो जाएगी समय से कुछ मिनिट पहले ही उम्मीद की खिड़की यह कहकर कि गाड़ी में अब कोई सीट ख़ाली नहीं। देर हो जाएगी कड़ी धूप और लू के थपेड़ों से राहत पाने के लिए किसी अनजानी परछी में जगह पाने में, एक प्राचीन कवि के पद्य में नहीं स्वप्न में उमगे रूपक को पकड़ने में, हरे वृक्ष की छाँह में प्यास से दम तोड़ती चिड़िया …
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Sau Baaton Ki Ek Baat | Ramanath Awasthi
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1:59सौ बातों की एक बात - रमानाथ अवस्थी सौ बातों की एक बात है. रोज़ सवेरे रवि आता है दुनिया को दिन दे जाता है लेकिन जब तम इसे निगलता होती जग में किसे विकलता सुख के साथी तो अनगिन हैं लेकिन दुःख के बहुत कठिन हैं सौ बातो की एक बात है. अनगिन फूल नित्य खिलते हैं हम इनसे हँस-हँस मिलते हैं लेकिन जब ये मुरझाते हैं तब हम इन तक कब जाते हैं जब तक हममे साँस रहेगी त…
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आँच | वंदना मिश्रा गर्मियों में तेज़ आँच देखकर माँ कहती थी : 'आग अपने मायके आई है' और फिर चूल्हे की लकड़ियाँ कम कर दी जाती थीं मैं कहती थी : 'मायके में तो उसे अच्छे से रहने दो माँ कम क्यों कर रही हो?' माँ कहती थी : 'ये लड़की प्रश्न बहुत पूछती है।' बाद में समझ आया प्रश्न पूछने से मना करना आग कम करने की तरफ़ बढ़ा पहला क़दम होता है।…
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ज़ूमिंग |अशफ़ाक़ हुसैन देखूँ जो आसमाँ से तो इतनी बड़ी ज़मीं इतनी बड़ी ज़मीन पे छोटा सा एक शहर छोटे से एक शहर में सड़कों का एक जाल सड़कों के जाल में छुपी वीरान सी गली वीराँ गली के मोड़ पे तन्हा सा इक शजर तन्हा शजर के साए में छोटा सा इक मकान छोटे से इक मकान में कच्ची ज़मीं का सहन कच्ची ज़मीं के सहन में खिलता हुआ गुलाब खिलते हुए गुलाब में महका हुआ बदन मह…
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पगली आरज़ू | नासिरा शर्मा कहा था मैंने तुमसे उस गुलाबी जाड़े की शुरुआत में उड़ना चाहती हूँ मैं तुम्हारे साथ खुले आसमान में चिड़ियाँ उड़ती हैं जैसे अपने जोड़ों के संग नापतीं हैं आसमान की लम्बाई और चौड़ाई नज़ारा करती हैं धरती का, झांकती हैं घरों में पार करती हैं पहाड़, जंगल और नदियाँ फिर उतरती हैं ज़मीन पर, चुगती हैं दाना सुस्ताती किसी पेड़ की शाख़ पर…
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Hanso Ek Bachhe Ki Tarah | Amita Prajapati
1:15
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1:15हँसो एक बच्चे की तरह | अमिता प्रजापति तुम प्यार को पृथ्वी मान कर मत घूमो हर्क्यूलिस की तरह मत झुकाओ इसके वज़न से अपनी गर्दन धीरे से सरका के इसे गिरा लो अपने पैरों में उछालो गेंद की तरह हँसो एक बच्चे की तरह...द्वारा Nayi Dhara Radio
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धार | अरुण कमल कौन बचा है जिसके आगे इन हाथों को नहीं पसारा यह अनाज जो बदल रक्त में टहल रहा है तन के कोने-कोने यह क़मीज़ जो ढाल बनी है बारिश सर्दी लू में सब उधार का, माँगा-चाहा नमक-तेल, हींग-हल्दी तक सब क़र्ज़े का यह शरीर भी उनका बंधक अपना क्या है इस जीवन में सब तो लिया उधार सारा लोहा उन लोगों का अपनी केवल धार…
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Us Plumber Ka Naam Kya Hai | Rajesh Joshi
3:03
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3:03उस प्लम्बर का नाम क्या है | राजेश जोशी मैं दुनिया के कई तानाशाहों की जीवनियाँ पढ़ चुका हूँ कई खूँखार हत्यारों के बारे में भी जानता हूँ बहुत कुछ घोटालों और यौन प्रकरणों में चर्चित हुए कई उच्च अधिकारियों के बारे में तो बता सकता हूँ ढेर सारी अंतरंग बातें और निहायत ही नाकारा क़िस्म के राजनीतिज्ञों के बारे में घंटे भर तक बोल सकता हूँ धारा प्रवाह लेकिन घं…
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Rang Is Mausam Mein Bharna Chahiye | Anjum Rehbar
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1:36रंग इस मौसम में भरना चाहिए | अंजुम रहबर रंग इस मौसम में भरना चाहिए सोचती हूँ प्यार करना चाहिए ज़िंदगी को ज़िंदगी के वास्ते रोज़ जीना रोज़ मरना चाहिए दोस्ती से तज्रबा ये हो गया दुश्मनों से प्यार करना चाहिए प्यार का इक़रार दिल में हो मगर कोई पूछे तो मुकरना चाहिएद्वारा Nayi Dhara Radio
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कवि का घर | रामदरश मिश्र गेन्दे के बड़े-बड़े जीवन्त फूल बेरहमी से होड़ लिए गए और बाज़ार में आकर बिकने लगे बाज़ार से ख़रीदे जाकर वे पत्थर के चरणों पर चढ़ा दिए गए फिर फेंक दिए गए कूड़े की तरह मैं दर्द से भर आया और उनकी पंखुड़ियाँ रोप दीं अपनी आँगन-वाटिका की मिट्टी में अब वे लाल-लाल, पीले-पीले, बड़े-बड़े फूल बनकर दहक रहे हैं मैं उनके बीच बैठकर उनसे सम…
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तुमने मुझे | शमशेर बहादुर सिंह तुमने मुझे और गूँगा बना दिया एक ही सुनहरी आभा-सी सब चीज़ों पर छा गई मै और भी अकेला हो गया तुम्हारे साथ गहरे उतरने के बाद मैं एक ग़ार से निकला अकेला, खोया हुआ और गूँगा अपनी भाषा तो भूल ही गया जैसे चारों तरफ़ की भाषा ऐसी हो गई जैसे पेड़-पौधों की होती है नदियों में लहरों की होती है हज़रत आदम के यौवन का बचपना हज़रत हौवा क…
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आदत | गुलज़ार साँस लेना भी कैसी आदत है जिए जाना भी क्या रिवायत है कोई आहट नहीं बदन में कहीं कोई साया नहीं है आँखों में पाँव बेहिस हैं चलते जाते हैं इक सफ़र है जो बहता रहता है कितने बरसों से कितनी सदियों से जिए जाते हैं जिए जाते हैं आदतें भी अजीब होती हैंद्वारा Nayi Dhara Radio
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औरतें | शुभा औरतें मिट्टी के खिलौने बनाती हैं मिट्टी के चूल्हे और झाँपी बनाती हैं औरतें मिट्टी से घर लीपती हैं मिट्टी के रंग के कपड़े पहनती हैं और मिट्टी की तरह गहन होती हैं औरतें इच्छाएँ पैदा करती हैं और ज़मीन में गाड़ देती हैं औरतों की इच्छाएँ बहुत दिनों में फलती हैंद्वारा Nayi Dhara Radio
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Swapn Mein Pita | Ghulam Mohammad Sheikh
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2:23स्वप्न में पिता | ग़ुलाम मोहम्मद शेख़ बापू, कल तुम फिर से दिखे घर से हज़ारों योजन दूर यहाँ बाल्टिक के किनारे मैं लेटा हूँ यहीं, खाट के पास आकर खड़े आप इस अंजान भूमि पर भाइयों में जब सुलह करवाई तब पहना था वही थिगलीदार, मुसा हुआ कोट, दादा गए तब भी शायद आप इसी तरह खड़े होंगे अकेले दादा का झुर्रीदार हाथ पकड़। आप काठियावाड़ छोड़कर कब से यहाँ क्रीमिया के…
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उस दिन | रूपम मिश्र उस दिन कितने लोगों से मिली कितनी बातें , कितनी बहसें कीं कितना कहा ,कितना सुना सब ज़रूरी भी लगा था पर याद आते रहे थे बस वो पल जितनी देर के लिए तुमसे मिली विदा की बेला में हथेली पे धरे गये ओठ देह में लहर की तरह उठते रहे कदम बस तुम्हारी तरफ उठना चाहते थे और मैं उन्हें धकेलती उस दिन जाने कहाँ -कहाँ भटकती रही वे सारी जगहें मेरी नहीं …
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मनुष्य - विमल चंद्र पाण्डेय मुझे किसी की मृत्यु की कामना से बचना है चाहे वो कोई भी हो चाहे मैं कितने भी क्रोध में होऊँ और समय कितना भी बुरा हो सामने वाला मेरा कॉलर पकड़ कर गालियाँ देता हुआ क्यों न कर रहा हो मेरी मृत्यु का एलान मुझे उसकी मृत्यु की कामना से बचना है यह समय मौतों के लिए मुफ़ीद है मनुष्यों की अकाल मौत का कोलाज़ रचता हुआ फिर भी मैं मरते हु…
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अपने प्रेम के उद्वेग में | अज्ञेय अपने प्रेम के उद्वेग में मैं जो कुछ भी तुमसे कहता हूँ, वह सब पहले कहा जा चुका है। तुम्हारे प्रति मैं जो कुछ भी प्रणय-व्यवहार करता हूँ, वह सब भी पहले हो चुका है। तुम्हारे और मेरे बीच में जो कुछ भी घटित होता है उससे एक तीक्ष्ण वेदना-भरी अनुभूति मात्र होती है—कि यह सब पुराना है, बीत चुका है, कि यह अभिनय तुम्हारे ही जी…
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तुम | अदनान कफ़ील दरवेश जब जुगनुओं से भर जाती थी दुआरे रखी खाट और अम्मा की सबसे लंबी कहानी भी ख़त्म हो जाती थी उस वक़्त मैं आकाश की तरफ़ देखता और मुझे वह ठीक जुगनुओं से भरी खाट लगता कितना सुंदर था बचपन जो झाड़ियों में चू कर खो गया मैं धीरे-धीरे बड़ा हुआ और जवान भी और तुम मुझे ऐसे मिले जैसे बचपन की खोई गेंद मैंने तुम्हें ध्यान से देखा मुझे अम्मा की याद आ…
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प्रेम के प्रस्थान | अनुपम सिंह सुनो, एक दिन बन्द कमरे से निकलकर हम दोनों पहाड़ों की ओर चलेंगे या फिर नदियों की ओर नदी के किनारे, जहाँ सरपतों के सफ़ेद फूल खिले हैं। या पहाड़ पर जहाँ सफ़ेद बर्फ़ उज्ज्वल हँसी-सी जमी है दरारों में और शिखरों पर काढेंगे एक दुसरे की पीठ पर रात का गाढ़ा फूल इस बार मैं नहीं तुम मेरे बाजुओं पर रखना अपना सिर मैं तुम्हें दूँगी…
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Dhoop Bhi To Barish Hai | Shahanshah Alam
1:41
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1:41धूप भी तो बारिश है | शहंशाह आलम धूप भी तो बारिश है बारिश बहती है देह पर धूप उतरती है नेह पर मेरे संगीतज्ञ ने मुझे बताया धूप है तो बारिश है बारिश है तो धूप है मैंने जिससे प्रेम किया उसको बताया तुम हो तो ताप और जल दोनों है मेरे अंदर।द्वारा Nayi Dhara Radio
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Jo Ulajhkar Reh Gayi Hai Filon Ke Jaal Mein | Adam Gondvi
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1:48जो उलझकर रह गई है फ़ाइलों के जाल में | अदम गोंडवी जो उलझकर रह गई है फ़ाइलों के जाल में गाँव तक वह रौशनी आएगी कितने साल में बूढ़ा बरगद साक्षी है किस तरह से खो गई रमसुधी की झोंपड़ी सरपंच की चौपाल में खेत जो सीलिंग के थे सब चक में शामिल हो गए हमको पट्टे की सनद मिलती भी है तो ताल में जिसकी क़ीमत कुछ न हो इस भीड़ के माहौल में ऐसा सिक्का ढालिए मत जिस्म की टकसा…
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लड़ाई के समाचार | नवीन सागर लड़ाई के समाचार दूसरे सारे समाचारों को दबा देते हैं छा जाते हैं शांति के प्रयासों की प्रशंसा करते हुए हम अपनी उत्तेजना में मानो चाहते हैं युद्ध जारी रहे। फिर अटकलों और सरगर्मियों का दौर जिसमें फिर युद्ध छिड़ने की गुंजाइश दिखती है। युद्ध रोमांचित करता है! ध्वस्त आबादियों के चित्र देखने का ढंग बाद में शर्मिंदा करता है अकेल…
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खाना बनाती स्त्रियाँ | कुमार अम्बुज जब वे बुलबुल थीं उन्होंने खाना बनाया फिर हिरणी होकर फिर फूलों की डाली होकर जब नन्ही दूब भी झूम रही थी हवाओं के साथ जब सब तरफ़ फैली हुई थी कुनकुनी धूप उन्होंने अपने सपनों को गूँधा हृदयाकाश के तारे तोड़कर डाले भीतर की कलियों का रस मिलाया लेकिन आख़िर में उन्हें सुनाई दी थाली फेंकने की आवाज़ आपने उन्हें सुंदर कहा तो …
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Ek Bahut Hi Tanmay Chuppi | Bhavani Prasad Mishra
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1:45एक बहुत ही तन्मय चुप्पी | भवानीप्रसाद मिश्र एक बहुत ही तन्मय चुप्पी ऐसी जो माँ की छाती में लगाकर मुँह चूसती रहती है दूध मुझसे चिपककर पड़ी है और लगता है मुझे यह मेरे जीवन की लगभग सबसे निविड़ ऐसी घड़ी है जब मैं दे पा रहा हूँ स्वाभाविक और सुख के साथ अपने को किसी अनोखे ऐसे सपने को जो अभी-अभी पैदा हुआ है और जो पी रहा है मुझे अपने साथ-साथ जो जी रहा है मुझ…
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देना | नवीन सागर जिसने मेरा घर जलाया उसे इतना बड़ा घर देना कि बाहर निकलने को चले पर निकल न पाए जिसने मुझे मारा उसे सब देना मृत्यु न देना जिसने मेरी रोटी छीनी उसे रोटियों के समुद्र में फेंकना और तूफ़ान उठाना जिनसे मैं नहीं मिला उनसे मिलवाना मुझे इतनी दूर छोड़ आना कि बराबर संसार में आता रहूँ अगली बार इतना प्रेम देना कि कह सकूँ प्रेम करता हूँ और वह मे…
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Ek Baar Kaho Tum Meri Ho | Ibn e Insha
2:08
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2:08इक बार कहो तुम मेरी हो | इब्न-ए-इंशा हम घूम चुके बस्ती बन में इक आस की फाँस लिए मन में कोई साजन हो कोई प्यारा हो कोई दीपक हो, कोई तारा हो जब जीवन रात अँधेरी हो इक बार कहो तुम मेरी हो जब सावन बादल छाए हों जब फागुन फूल खिलाए हों जब चंदा रूप लुटाता हो जब सूरज धूप नहाता हो या शाम ने बस्ती घेरी हो इक बार कहो तुम मेरी हो हाँ दिल का दामन फैला है क्यूँ गोर…
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Mere Ekant Ka Pravesh Dwar | Nirmala Putul
2:14
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2:14मेरे एकांत का प्रवेश-द्वार | निर्मला पुतुल यह कविता नहीं मेरे एकांत का प्रवेश-द्वार है यहीं आकर सुस्ताती हूँ मैं टिकाती हूँ यहीं अपना सिर ज़िंदगी की भाग-दौड़ से थक-हारकर जब लौटती हूँ यहाँ आहिस्ता से खुलता है इसके भीतर एक द्वार जिसमें धीरे से प्रवेश करती मैं तलाशती हूँ अपना निजी एकांत यहीं मैं वह होती हूँ जिसे होने के लिए मुझे कोई प्रयास नहीं करना प…
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लफ़्ज़ों का पुल | निदा फ़ाज़ली मस्जिद का गुम्बद सूना है मंदिर की घंटी ख़ामोश जुज़दानों में लिपटे आदर्शों को दीमक कब की चाट चुकी है रंग गुलाबी नीले पीले कहीं नहीं हैं तुम उस जानिब मैं इस जानिब बीच में मीलों गहरा ग़ार लफ़्ज़ों का पुल टूट चुका है तुम भी तन्हा मैं भी तन्हाद्वारा Nayi Dhara Radio
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Ramayana Mein Mahabharat | Avtar Engill
2:09
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2:09रामायण में महाभारत | अवतार एनगिल रविवार की सुबह उस औरत ने बड़ी मुश्किल से पति और बच्चों को जगाया किसी को ब्रश किसी को बनियान किसी को तौलिया थमाया चूल्हे के सामने खड़ी जैसे चौखटे में जड़ी बड़े के लिए लिए परांठे छोटों को ऑमलेट ’उनके’ लिए कम नमक वाला सासु के लिए नरम ससुर के लिए गरम अलग अलग अलग नाश्ते बना रही है और उसकी सासु माँ चौपाईयाँ गा रही है टी-व…
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